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भारतीयता पर नहीं राजन की नीतियों पर है एतराज: गुरुमूर्ति

गुरुमूर्ति पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट,पत्रकार और एक बेहतर व्यापारिक सलाहकार हैं।

भारतीयता पर नहीं राजन की नीतियों पर है एतराज: गुरुमूर्ति
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नई दिल्ली. आरएसएस विचारक और जाने माने पत्रकार एस गुरुमूर्ति का कहना है कि उन्हें रघुराम राजन की भारतीयता पर कोई संदेह नहीं है। उन्होंने कहा हैं कि सांस्कृतिक रूप से राजन सबसे बेहतर भारतीय हैं। उन्हें राजन की राष्ट्रीयता से नहीं बल्कि उनकी नीतियों से एतराज है।
बता दें कि गुरुमूर्ति पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, पत्रकार और एक बेहतर व्यापारिक सलाहकार हैं। हालांकि उनका अपना कोई बिजनेस नहीं है। संघ में कोई औपचारिक भूमिका न होते हुए भी उन्हें आरएसएस के विचारक के रूप में जाना जाता है। राजनीति और बिजनेस के क्षेत्र में गुरुमूर्ति एक सशक्त आवाज हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ लोगों का मानना है कि गुरुमूर्ति संघ में राजनीति और बिजनेस के पदों पर कायम हैं। इसके साथ ही भाजपा शासित लुटियंस दिल्ली में उनके राजनीतिक विचार भी काफी मायने रखते हैं। संघ परिवार का एक गुट जो राजन को बहार निकलने के लिए मांग कर रहा था, उसमे गुरुमूर्ति का भी नाम शामिल बताया गया है। गुरुमूर्ति स्वदेशी जागरण मंच के सहसंयोजक भी हैं।
इकोनॉमिक टाइम्स के रिपोर्टर प्रवीण एस थम्पी को दिए गए एक खास इंटरव्यू में गुरुमूर्ति का तर्क है कि उनकी लड़ाई लोगों के खिलाफ नहीं है। उनका कहना है कि भारतीय विशेषज्ञों को महात्मा गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले की तरह एक दशक तक भारत को जानना होगा।
इंटरव्यू के कुछ अंश :
एफडीआइ का बड़े पैमाने पर उद्घाटन राष्ट्रीय हित में है या विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर भारत की निर्भरता और बढ़ जाएगी या फिर भारतीय बाजार का बड़ा हिस्सा विदेशियों के हवाले करना होगा? जैसा कि सिविल एविएशन के मामले में है।
यह चर्चा का विषय है। एफडीआइ का खुलना आर्थिक के साथ रणनीतिक भी है। 1990 दशक के शुरुआत में यह नहीं था। डॉलर पाने के लिए हमारे पास कोई रणनीतिक विकल्प नहीं था। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और डॉटकॉम जैसे मामलों के बाद दुनिया भी बदल रही है। 2000 के बाद से अमेरिका और पश्चिमी एशिया धीरे-धीरे अपनी खोयी स्थिति पाने में लगे हुए हैं। अमेरिका के साथ मनमोहन सिंह की परमाणु संधि ने भारत की सामरिक प्रासंगिकता को बढ़ाया है।
साथ ही यह नरेंद्र मोदी की असाधारण सफलता है जो अन्य देशों से सामरिक सम्बन्धों को गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका से ईरान और जापान तक भारत की विश्व में अलग पहचान बन रही है। यह सच है कि 2016 का भारत 1996 जैसा नहीं होगा अब हम विदेशियों का सामना करने में सक्षम हैं। इसलिए एफडीआइ की शुरआत भी मेक इन इंडिया और मेड इन इंडिया के तहत हो सकती है।
एफडीआइ आयात की तुलना में एक बेहतर विकल्प है जिसने ऑटोमोबाइल में देश को एक्सपोर्ट हब बना दिया है। इसके साथ ही दो चिंता के विषय भी बन गए हैं। एक सिविल एविएशन और जिसने एयर इंडिया के लिए अभी कोई निर्णय नहीं लिया है। दूसरा फूड रिटेल है जो विदेशी व्यपार को बढ़ने में मजबूती देता है। मुझे लगता है कि नई नीतियों से रक्षा उत्पादन में मजबूती आएगी और देश और सशक्त हो जाएगा।
क्या आपको लगता है नरेंद्र मोदी सरकार के आर्थिक सुधार के एजेंडे 'भारतीयता' भाजपा और स्वदेशी जागरण मंच द्वारा अपनाई की विचारधारा के अनुरूप है?
भारतीयता का मतलब कभी भी अछूता या निरंकुश होना नहीं है। असल में रिफोर्म शब्द अपने आप में ही गलत है। यह एक बाहरी बेंचमार्क मान लिया जाता है। मैं रिफार्म की बजाय चेंज शब्द को कहना पसंद करूंगा। 1990 में अमेरिका की अनियमित वित्तीय मॉडल एक बेंचमार्क है। बदलाव लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। अमेरिका भी अब रेगुलेशन में ही आगे बढ़ रह है। अगर भारतीय अर्थशास्त्री यह बात समझते हैं तो कोई भी गलतफमी दूर की जा सकती है।
क्या आप सुब्रमण्यम स्वामी के रघुराम राजन पर किये गए कमेंट से सहमत है कि 'वह मानसिक रूप से पूरी तरह भारतीय नहीं है।' अपना पहला कारण बताइए की आपको राजन आरबीआइ के गवर्नर के रूप में क्यों पसंद नहीं हैं।
सांस्कृतिक रूप से राजन सबसे बेहतर भारतीय हैं। मुझे रघुराम राजन की भारतीयता पर कोई संदेह नहीं है। मुझे उनकी नीतियों से एतराज है। मुझे लगता भारतीय विशेषज्ञों को पॉलिसीज बनाने से पहले देश को जान लेना चाहिए। जैसा की गांधी जी ने अफ्रीका से लौटकर गोखले की सलाह पर काम किया था। स्वामी ने यह भी मांग की थी कि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए था क्योंकि कुछ साल पहले उन्होंने बौद्धिक संपदा अधिकारों पर भारत के खिलाफ वाशिंगटन का समर्थन किया था।
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