कम नहीं हुई मकान की समस्या
प्रॉपर्टी डीलर व मकान मालिक को अग्रिम एडवांस देने में कई महीने का बजट खराब हो जाता है।

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haribhoomi.comCreated On: 27 Jun 2016 5:39 AM GMT
नई दिल्ली. दिल्ली में रूम रेंट कंट्रोल एक्ट लागू नहीं हुआ है। ऐसे में मकान मालिक इस साल भी छात्रों को कमरा किराए पर देते समय मनमानी रकम की मांग कर सकते हैं। पिछले कई सालों से दिल्ली यूनिवर्सिटी व जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के छात्रों सहित विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए दिल्ली में रूम रेंट कंट्रोल एक्ट लागू करने की लड़ाई लड़ रहे प्रवीण सिंह महीनों भूख हड़ताल कर इस मुद्दे की तरफ सरकार सहित लोगों का ध्यान तो आकर्षित करने में तो सफल रहे लेकिन दिल्ली में यह एक्ट लागू नहीं करवा सके।
कॉलेज हॉस्टल की समस्या
हर साल बड़ी संख्या डीयू व जेएनयू में देश के अन्य राज्यों के छात्र दाखिला लेते हैं। अच्छे मार्क्स की वजह से बाहरी राज्यों से आए छात्रों को डीयू-जेएनयू में दाखिला तो मिल जाता है लेकिन उनके समक्ष सबसे बड़ी समस्या दिल्ली में रहने को लेकर आती है। ऐसे में दिल्ली के बाहर से आने वाला हर छात्र कॉलेज हॉस्टल में अपने लिए एक सीट पक्की करने के जुगाड़ में लग जाता है लेकिन जिस संख्या में बाहरी राज्यों से आए छात्रों को विभिन्न सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दाखिला मिलता हैं, उस अनुपात में डीयू में हॉस्टल नहीं है। यहीं कारण है कि यूजी-पीजी कोर्सेज में दाखिले के लिए छात्र को शायद उतनी टफ फाइट का सामना नहीं करना पड़ता, जितनी टफ फाइट का सामना उसे हॉस्टल में एक-एक सीट के लिए करनी पड़ती है।
बाहरी छात्रों की समस्या
ऐसे में बाहरी छात्रों के समक्ष कॉलेज के आसपास के एरिया में मकान किराये पर लेने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता। कम किराया देना पड़े इसके लिए कई छात्र मिलकर मकान लेते हैं लेकिन प्रॉपर्टी डीलर व मकान मालिक को अग्रिम एडवांस देने में कई महीने का बजट खराब हो जाता है। बावजूद इसके छात्रों को जरूरी सुविधाएं नहीं मिल पाती। कभी पानी तो कभी बिजली की समस्या से छात्र को दोचार होना पड़ता है। मुखर्जी नगर में किराये के मकान में रह रहे सुमित ने बताया कि हर साल पांच से दस फीसदी किराया बढ़ोत्तरी करने के बाद ही मकान मालिक किसी नए टेनेंट को कमरा देते हैं। किराये में यह बढ़ोत्तरी नए के साथ पुराने किरायेदार को चुकाना होता है। अगर हम बढ़ा किराया देने से मना करते हैं तो वे सीधे मकान खाली करने की बात कहते हैं। ऐसे में डीलर को पैसा देने व शिफ्टिंग में होने वाले खर्च के साथ नए मकान की तलाश में होने वाली परेशानी से बचने के लिए छात्र बढ़ा किराया दे देते हैं।
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