CG Elections 2018: ''लैलूंगा'' में ये बनेगा मुख्य मुद्दा
विधानसभा क्षेत्र 70 फीसदी वनों से घिरा है तथा यहां 38 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। इसलिए यहां के चुनावी मुद्दे खासतौर पर जल, जंगल और जमीन से जुड़े हुए हैं। लैलूंगा विधानसभा में वन संपदा खनिज संपदा का दोहन तथा वृहद औद्योगिक के बावजूद बेरोजगारी और पलायन बड़ी समस्या है।

जनता भाजपा शासन से पूरी तरह संतुष्ट है
विकास नाम की कोई चीज क्षेत्र में नहीं है
लैलूंगा में विकास नाम की कोई चीज नहीं है। सत्ता के साथ मिलकर पूंजीपतियांे ने किसानों की जमीनों पर कब्जा किया है। मुआवजे व रोजगार को लेकर सबसे ज्यादा आंदोलन लैलूंगा में ही होते आ रहे हैं।
रोजगार नहीं होने से पलायान लगातार हो रहा है। उद्योगों की वजह से प्रदूषण के कारण आबादी गंभीर बीमारियों का शिकार हो रही है। इस ओर ध्यान हीं नहीं दिया जा रहा है।
ह्दयराम राठिया (पूर्व विधायक, प्रत्याशी जोगी कांग्रेस)
जनता जर्नादन की बात
युवाओं को रोजगार नहीं
बुनियादी सुविधाएं तक नहीं
लैलूंगा विधानसभा में तीन पंचवर्षीय भाजपा का शासन रहा है, लेकिन लैलूंगा विधानसभा शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में ही पिछड़ा हुआ है। न तो स्कूलों की स्थिति सुधरी है न ही जनता को स्वास्थ्य, बिजली, पानी आदि बुनियादी सुविधाएं सुचारु हो पाई है।
जनप्रतिनिधियों में इच्छा शक्ति की कमी से विधानसभा के उस गांव तक का भलीभांति विकास नहीं हो पाया है। जिसे विधायक ने गोद लिया है।
गंगाराम पोर्ते, लैलूंगा
विकास के नाम पर ठगा सा महसूस कर रही जनता
खगेश पटेल, खम्हरिया
इस बार त्रिकोणीय मुकाबला
2008 समीकरण: कांग्रेस की लहर चली, क्षेत्र की समस्याओं से खफा जनता ने नया चेहरा चुना
2013 समीकरण: विकास कार्यों से असंतुष्ट जनता ने कांग्रेस को नकारा, भाजपा सत्ता में आई
जातिगत समीकरण
लैलूंगा में राजघराने से लेकर कांग्रेस व भाजपा सभी ने किया राज
उद्योगपतियों और प्रशासनिक ज्यादती का शिकार हो रही जनता
विधानसभा एक नजर में
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