बिजली, टेलीविजन और स्मार्टफोन के अभाव में शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहें हैं आदिवासी छात्र
विश्व में व्याप्त कोरोना महामारी ने लोगों की कमर तोड कर रख दी है। कोरोना के कहर से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र को देखा जाये तो यह सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। देश के हर छात्र के लिए शिक्षा देना एक देश के लिए चुनौती बन गया है।

विश्व में व्याप्त कोरोना महामारी ने लोगों की कमर तोड कर रख दी है। कोरोना के कहर से कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र को देखा जाये तो यह सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। देश के हर छात्र के लिए शिक्षा देना एक देश के लिए चुनौती बन गया है।
भारत देश जो कि अभी विकासशील देशों की श्रेणी में आता है। यहां कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहां लाइट, पानी, नेटवर्क की सरकार व्यवस्था अभी उपलब्ध नहीं करा पायी है। कोरोना महामारी के दौर में स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाओं का आयोजन किया जा रहा है।
देश के पिछडे क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी छात्र जिनके पास न तो बिजली की व्यवस्था है और न ही टेलीविजन,स्मार्टफोन की व्यवस्था है वे वर्तमान में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बडी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। आदिवासी छात्र शिक्षा प्राप्त करने से बंचित हैं।
इन सभी बाधाओं का सामना करते हुए आदिवासी छात्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। इस सत्र में कोरोना महामारी के संकट के समय में कक्षा 10वीं और 12वीं में श्रीदेवी और देवयानी ने अपनी अतुलनीय प्रतिभा का परिचय दिया है। इन दोनों छात्रों को छात्रवृत्ति दी जायेगी। उन्होने अपनी महनत से अपना आगे का मार्ग सुगम कर लिया है।
कोरोना महामारी के कारण इन युवा छात्रों के सपनों में रुकावट आ गई है। बिजली और आधुनिक उपकरण उनके लिए एक सपने के समान हैं। पोलाची के पास एक आदिवासियों का गांव अलियार है बिजली उनके लिए एक वहुत बडी उपलब्धि है।
यहां के आदिवासी लोग अपना जीवनयापन वन में उपलब्ध जडी बूटियों को बेच-बेचकर करते हैं। वे अपना पेट भी जंगली फलों को खाकर भरते हैं। इन सभी समस्याओं के बावजूद वे अपने बच्चों को विद्यालय भेजते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि शिक्षा के द्वारा ही उनके बच्चों की जिन्दगी में परिवर्तन लाया जा सकता है।
आदिवासी छात्रों की सरकार से अपील
ऑनलाइन कक्षाएं शुरू कर दी गई हैं। हमारे क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं है। बिजली, टीवी और स्मार्ट फोन के विना बच्चों का सीख पाना मुश्किल है। सरकार को इन आदिवासी लोगों की शिक्षा के प्रति जागरुक होकर कुछ करना चाहिए। इन सारी सुविधाओं के अभाव में गांव के बच्चे अपना सारा समय खेलकर व्यतीत करते हैं क्योकि उन्हें अभी भविष्य का बोध नहीं है।