Career Advice : जानिए फार्माकोविजिलेंस में ब्राइट करियर कैसे बनाएं
बायो स्ट्रीम से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स के लिए केवल डॉक्टर बनना ही करियर का ऑप्शन नहीं होता है। दवाओं के प्रोडक्शन, उसकी क्वालिटी चेकिंग और उसके ट्रायल से रिलेटेड कई और कार्यों से जुड़ा करियर बनाने के लिए और फार्माकोविजिलेंस प्रोफेशन चुन सकते हैं। इस फील्ड में करियर के बहुत अच्छे स्कोप हैं। करियर एक्सपर्ट-एजुकेशनिस्ट डॉ. जयंतीलाल भंडारी इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं, आइये जानते हैं।

इसमें कोई दोमत नहीं है कि भारत की दवा कंपनियों का व्यापार वैश्विक मंदी के बावजूद लगातार तेजी से बढ़ रहा है। वर्तमान में भारत, अमेरिका, रूस, जर्मनी, इंग्लैंड और ब्राजील सहित दुनिया के 200 से अधिक देशों को दवाइयों (औषधियों) का निर्यात करता है। उल्लेखनीय है कि पिछले तीन सालों में भारतीय दवा उद्योग ने काफी बढ़ोतरी दर्ज की है और वर्ष 2020 तक इसके 55 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। वैश्विक दवा उद्योग में भारत टॉप 5 उभरती हुई मार्केट में से एक बन गया है। इसी के चलते इस क्षेत्र में युवाओं के लिए चमकीले रोजगार के अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
बढ़ रहा दवा कारोबार
गौरतलब है कि दवा निर्माण का कार्य अत्यंत प्राचीनकाल से चला आ रहा है। आधुनिक दवा उद्योग जिसका बड़ा हिस्सा एलोपैथिक दवाओं का है, लगभग 100-150 वर्ष पुराना है। दवा उद्योग के विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। दवा उद्योग में वर्ष-प्रतिवर्ष परिवर्तन आ रहे हैं। नए गतिविधि क्षेत्र जैसे कि अनुबंध शोध, क्लीनिकल ट्रायल्स, नई औषधियों का विकास, नई औषधि डिलीवरी प्रणालियां आदि उभरकर सामने आईं हैं।
दवा उद्योग में तीव्र वृद्धि के साथ ही पूरी दुनिया में नकली दवाओं तथा कम गुणवत्ता वाली दवाओं का कारोबार भी तेजी से पनप रहा है। हर साल अंतरराष्ट्रीय अपराध जगत नकली दवाएं बेचकर अरबों रुपए कमा रहा है। आमतौर पर ये दवाएं बीमारी पर कोई असर नहीं करतीं इसके कारण बीमारी बढ़ती जाती है और मरीज की जान पर भी बन आती है। एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार करीब सात लाख लोग मलेरिया या टीबी की नकली दवा या कम गुणवत्ता वाली दवाओं को इस्तेमाल करने के कारण प्रति वर्ष मारे जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में नकली दवाओं तथा कम गुणवत्ता वाली दवाओं का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इन नकली दवाओं तथा कम गुणवत्ता वाली दवाओं का खतरा सबसे ज्यादा भारत जैसे विकासशील देशों में है, जहां दवाओं के कारोबार पर नियम कानून का पहरा बहुत मामूली है। नकली दवाओं तथा कम गुणवत्ता वाली दवाओं को बाजार में आने से रोकने तथा दवाओं के नियमन से जुड़ा फार्माकोविजिलेंस इस समय एक उभरता हुआ चमकीला करियर क्षेत्र बन गया है।
वर्क एरिया
फार्माकोविजिलेंस के अंतर्गत दवाओं से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जाता है। नकली दवाओं की पहचान करना, मरीजों पर पड़ रहे दवाओं के असर को पहचानना, उसको मापना, उसकी पुष्टि करना, दवाओं की उपलब्धता, उसका विपणन, प्रयोग, दवाओं का नियमन आदि फार्माकोविजिलेंस के अंतर्गत आते हैं। हमारे देश में नकली दवाओं के साथ ही दवाइयों की क्वालिटी भी एक बहुत बड़ा इश्यू है। लोगों में अवेयरनेस की कमी और सुस्त सिस्टम होने के कारण बीमारी होने पर हमें कभी-कभार ऐसी दवाइयां लेनी पड़ती हैं, जो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड पर खरी नहीं उतरतीं हैं। इन कमियों को दूर करने के लिए सरकार के साथ- साथ दवा कंपनियां भी कई रेग्युलेटर्स का इस्तेमाल करती है। जो दवा के इफेक्ट्स को ऑब्जर्व करने में एक्सपर्ट होते हैं और उसके बेसिस पर कंपनियों को फीडबैक देती हैं। ऐसे एक्सपर्ट्स को हम फार्माकोविजिलेंट्स के नाम से भी जानते हैं।
नेचर ऑफ वर्क
फार्माकोविजिलेंट्स मार्केट में भेजे जाने से पहले दवाइयों की कड़ी जांच पड़ताल करते हैं। वे पेशेंट्स पर दवाओं के असर को पहचानकर उसके इफेक्ट्स को मापते हैं और उसकी पुष्टि करने के बाद इसकी पूरी जानकारी दवा कंपनियों को देते हैं। इस जानकारी के आधार पर ही दवा कंपनियां अपने प्रोडक्ट में बदलाव करती हैं ताकि उन्हें और बेहतर तथा मरीजों के लिए सुरक्षित बनाया जा सके। एक फार्माकोविजिलेंट, लैब में दवाइयों में यूज होने वाले केमिकल्स को टेस्ट करता है।
इसके बाद चुनिंदा पेशेंट्स के मेडिकल पास्ट को स्टडी करके दी जाने वाली दवा के इफेक्ट्स को ऑब्जर्व करता है। उसके सर्टिफिकेशन के बाद ही दवा को लार्ज स्केल पर बनाने का काम किया जाता है। इसके साथ ही फार्माकोविजिलेंट्स बाजार में बिक रही नकली अथवा कम गुणवत्ता वाली दवाइयों की पहचान कर संबंधित रेग्युलेटिंग एजेंसी को जानकारी देता है।
पर्सनल स्किल्स
फार्माकोविजिलेंस का क्षेत्र उन लोगों के लिए बेहतर है, जो दवाइयों की कम गुणवत्ता के असर को पकड़ने में सक्षम हों। इसके लिए हमेशा मरीजों, चिकित्सकों, दवा विक्रेताओं, मेडिसिन कंट्रोल बोर्ड आदि के संपर्क में रहना पड़ता है। इसके अलावा लोगों को स्वास्थ्य के प्रति सजग और सुरक्षित रखने की प्रबल भावना भी होनी चाहिए।
फार्माकोविजिलेंस को अपना पेशा बनाने के इच्छुक छात्रों की जीव विज्ञान में विशेष रुचि होनी चाहिए ताकि वे यह समझ सकें कि उपयुक्त दवा शरीर के किस हिस्से पर असर करेगी और कैसे? उसे जीव विज्ञान के साथ-साथ रसायन शास्त्र में भी पारंगत होना चाहिए ।
साइंस के स्टूडेंट्स के लिए फार्माकोविजिलेंस एक बेहतर करियर फील्ड है। इन दिनों इस फील्ड में करियर की अच्छी संभावनाएं हैं। अगर आपकी रुचि मेडिकल के क्षेत्र में है तो यह कोर्स आपके लिए बहुत अच्छा रहेगा।
मेन कोर्सेस-एलिजिबिलिटीज
फार्माकोविजिलेंस के क्षेत्र में करियर बनाने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट्स सर्टिफिकेट और डिप्लोमा दोनों तरह के कोर्स कर सकते हैं। फार्माकोविजिलेंस और फार्माकोइपिडेमियोलॉजी में सर्टिफिकेट कोर्स चार महीने का होता है। जहां तक पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा, डिग्री की बात है, तो यह एक साल का होता है। इस कोर्स में वे स्टूडेंट ही एडमिशन ले सकते हैं, जिन्होंने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन बॉटनी, जूलॉजी, केमिस्ट्री बायोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, जेनेटिक्स, बायोटेक से की हो।
एडमिशन के लिए ग्रेजुएशन या फिर पोस्ट ग्रेजुएशन में कम से कम 50 फीसदी अंक होने आवश्यक हैं। केमिस्ट्री से ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट करने वाले स्टूडेंट भी इस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन इसमें कम से कम 50 फीसदी अंक जरूरी हैं। इसके अलावा, फार्मेसी और मेडिसिन से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाले स्टूडेंट भी आवेदन कर सकते हैं। उन्हें इस कोर्स में प्राथमिकता दी जाती है। छात्रों का चयन सामान्यतः एंट्रेंस टेस्ट, पर्सनल इंटरव्यू और स्क्रीनिंग टेस्ट पर आधारित होता है।
कोर्स कंटेंट
फार्माकोविजिलेंस कोर्स के अंतर्गत जो विषय पढ़ाए जाते है, वे हैं- बेसिक प्रिंसिपल ऑफ फार्माकोविजिलेंस, रेगुलेशन इन फार्माकोविजिलेंस, फार्माकोविजिलेंस इन क्लिनिकल रिसर्च, ड्रग रिएक्शन, मैनेजमेंट ऑफ फार्माकोविजिलेंस डाटा, रिस्क मैनेजमेंट इन फार्माकोविजिलेंस, फार्माकोइपिडेमियोलॉजी।
जॉब ऑप्शंस-सैलरी
फार्माकोविजिलेंस का कोर्स करने के बाद आप केंद्र तथा राज्य सरकार के अधीन विभागों में औषधि निरीक्षक बन सकते हैं। विनिर्माण केमिस्ट का पद भी फार्माकोविजिलेंस का कोर्स कर चुके उम्मीदवारों को ऑफर किया जाता है। प्रोडक्शन केमिस्ट के सक्रिय निर्देशन तथा व्यक्तिगत पर्यवेक्षण में दवाइयों का निर्माण किया जाता है। औषधियों के विनिर्माण कार्य की देख-रेख से जुड़ा यह रोजगार बहुत ही रोचक और जिम्मेदारीपूर्ण है। राष्ट्रीय या अन्य स्वीकृत औषध संग्रह में विनिर्दिष्ट मानदंडों के अनुरूप औषधीय उत्पादों की गुणवत्ता हेतु उत्पादों के नमूनों की जांच का कार्य किया जाता है। फार्माकोविजिलेंस का कोर्स करने के उपरांत क्वालिटी कंट्रोल केमिस्ट के रूप भी रोजगार के अवसर हैं। विनिर्माण इकाइयों के या खुदरा औषधि भंडार से लिए गए औषधियों के नमूनों की सरकारी औषधि परीक्षण प्रयोगशालाओं में जांच की जाती है। फार्माकोविजिलेंस का कोर्स करने के उपरांत सरकारी प्रयोगशालाओं में सरकारी विश्लेषक के रूप में कार्य किया जा सकता है। फार्माकोविजिलेंस से संबंधित कोर्स करने के बाद स्टूडेंट्स फार्मा कंपनियों में भी जॉब पा सकते हैं। इस फील्ड में शुरुआत में 20 से 25 हजार रुपए सैलरी मिलती है। वहीं, कुछ साल का अनुभव हासिल करने के बाद 30 से 75 हजार रुपए प्रतिमाह तक मिल सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
-आईसीआर, मुंबई, दिल्ली,बैंगलुरु
वेबसाइट- www.icriindia.com
•आईसीबीआईओ क्लीनिकल रिसर्च, बैंगलुरु
वेबसाइट- www.icbio.org
•आईडीडीसीआर, हैदराबाद
वेबसाइट- www.iddcr.com
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