मोदी के बयान पर इतना हंगामा क्यों

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By - ????? ????? |22 Sept 2014 6:30 PM
दुर्भाग्य से भारत की समस्या है कि मुस्लिम प्रश्नों पर खुलकर न बोलने की अर्जुन ग्रंथि का पूरा देश लंबे समय से शिकार है।
जो लोग वीर रस के कवियों की तरह पीएम मोदी द्वारा मुसलमानों को देशभक्त बताने पर चीख रहे हैं, उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर मोदी को क्या बोलना चाहिए था? देश की समस्या है कि मुस्लिम प्रश्नों पर खुलकर न बोलने की अर्जुन ग्रंथि का वह लंबे समय से शिकार है।
लोग वीर रस के कवियों की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सीएनएन के साक्षात्कार में मुसलमानों को देशभक्त बताने पर चीख रहे हैं उनसे यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर मोदी को क्या बोलना चाहिए था? दुर्भाग्य से भारत की समस्या है कि मुस्लिम प्रश्नों पर खुलकर न बोलने की अर्जुन ग्रंथि का पूरा देश लंबे समय से शिकार है। आज कोई श्रीकृष्ण भी नहीं जो इस अर्जुन ग्रंथि को तोड़ सकें। कुछ को छोड़कर राजनीति और पत्रकारिता में पाखंडियों की बड़ी संख्या है जो कि दुर्भाग्य से टीवी चैनलों पर आते हैं और अपने निहित स्वार्थ में सच बोलने की बजाय असच सामने लाते हैं और कुछ को न सच का ज्ञान है और न दृष्टि ही, इसलिए वे जो बोलते हैं उनका धरातली वास्तविकता से लेना देना नहीं होता। इस कारण मोदी के कथन का जो सही परिप्रेक्ष्य हमारे आप तक पहुंचना चाहिए नहीं पहुंच सका है। तो आखिर किस तरह इस वक्तव्य एवं इस पर चल रही सघन बहस को देखा जाए।
मेरा मानना है कि इस देश को सशक्त होना है तो फिर हिन्दू मुसलमानों को साथ मिलकर काम करना होगा। उनके बीच आपसी विश्वास, सद्भाव और एक वतन के होने के नाते भाईचारे जैसा भाव होना चाहिए। यह न भूलें कि भारत का एक प्रतिशत भी मुसलमान आतंकवादी हो जाएगा यह देश बचेगा ही नहीं। उनकी कम संख्या में आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना साबित करता है कि आम मुसलमान आतंकवाद के पक्ष में नहीं। यहां तक तो सब ठीक लगता है। लेकिन इसके अलावा कुछ विपरीत तर्क भी हैं जो कटु यथार्थ हैं जिनको सामने रखना आवश्यक है।
एक, प्रधानमंत्री का किसी टीवी साक्षात्कार का यह सामान्य वक्तव्य है। सीएनएन संवादाता फरीद जकारिया ने जब उनसे अल जवाहिरी के भारत और दक्षिण एशिया के संदर्भ में दिए वक्तव्य पर पूछा तो उन्होंने जो कहा उसका सार यही है कि भारत के मुस्लिम देशभक्त हैं वे कभी उसकी बात में नहीं आएंगे और भारत की रक्षा के लिए अपनी जान लड़ा देंगे। ध्यान रखिए कि पिछले 4 सितंबर को 55 मिनट के वीडियो में जवाहिरी ने कहा था कि अल कायदा की नई शाखा इस्लामी राज को बढ़ावा देगी और भारतीय उपमहाद्वीप में जेहाद का झंडा बुलंद करेगी तो हम इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। उसके अनुसार अल कायदा की नई शाखा म्यांमार (बर्मा), बांग्लादेश, असम, गुजरात, अहमदाबाद और कश्मीर में मुसलमानों को गर्व के साथ जोड़ेगा। इसमें भारतीय उपमहाद्वीप में शाखा का नाम कायदात अल जेहाद तथा इसके नेता के रूप में पाक आतंकी आसिम उमर का नाम घोषित किया गया है। इसमें मुसलमानों से जेहाद में शामिल होने का आह्वान किया गया है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री का यह जवाब था। मोदी की जगह कोई भी प्रधानमंत्री होता तो यही कहता। तीन, क्या यह ऐसी बात है जिस पर इस तरह की बहस होनी चाहिए? सहज स्थिति में तो यह बहस का विषय होना ही नहीं चाहिए। लेकिन बहस इसलिए हो रही है, क्योंकि नरेन्द्र मोदी की जिस तरह की छवि भारत और दुनिया की कुछ मीडिया ने, विरोधी नेताओं ने तथा मुसलमानों के अंदर इस्लाम के नाम पर नेतागिरी करने वालों ने बनाई है उसमें मुसलमानों पर वे कुछ भी बोलेंगे तो उसका असर होगा। तीसरा, फरीद जकारिया ने वाशिंगटन पोस्ट में लेख लिखकर जानबूझकर इस विषय को महत्व दिया ताकि यह सुर्खियों में आए, अन्यथा उनके ज्यादा प्रश्न भारत अमेरिका संबंधों पर थे। इस कारण वे प्रश्न दब गए जबकि मोदी की अमेरिका यात्रा को देखते हुए ज्यादा चर्चा उसकी होनी चाहिए।
इसकी प्रतिक्रिया में मुस्लिम समुदाय की ओर से जो चेहरे टीवी बहस में आए उनने पहले तो स्वागत किया, लेकिन कुछ इसको प्रश्नों के घेरे में भी ला रहे हैं। मसलन, इस पर उपचुनाव का असर तो नहीं है, उन्होंने अब यह बात क्यों बोली़ क़ुछ ने तो कह दिया कि उन्हें मोदी से देशभक्ति का प्रमाण पत्र नहीं चाहिए। ऐसी प्रतिक्रियाएं निहायत ही अशोभनीय और अस्वीकार्य हैं। हालांकि हमारे यहां मतभिन्नता की आजादी है। उप चुनाव से इसे जोड़ने वालों को यह पता ही नहीं कि साक्षात्कार परिणाम से पहले लिए गए थे। यह दुर्भाग्य है कि किसी बयान को आप ये मान लीजिए कि चूंकि मुसलमानों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मत देकर उसे उत्तर प्रदेश में हरा दिया तो वे भय से ऐसा बयान दे रहे हैं। आप उसको सही संदभरें में नहीं देखेंगे तो यह किसी के हित में नहीं होगा। वैसे मोदी ने जो कहा वह एक पक्ष है और उसमें सच्चाई, पर इसका दूसरा पक्ष भी है जिसे दुर्भाग्य से इस्लाम के नाम पर राजनीति करने वाले नेता स्वीकारने से परहेज करते हैं।
क्या यह सच नहीं है कि दुनिया भर में मुसलमानों में कट्टरपंथ बढ़ रहा है जिसको रोकने में मुस्लिम समाज असफल है? आखिर इस्लामिक दुनिया में किस तरह खून और विध्वंस का भयानक माहौल है यह किसी से छिपा है क्या? दो, भारत में भी उसका असर है तभी तो सैकड़ों की संख्या में भारतीय आईएसआईएस की ओर से सीरिया एवं इराक में लड़ रहे हैं। इसके पूर्व तालिबान व अल कायदा में भी भारतीय रहे हैं और आज भी हैं। तीन, भारत से सीरिया एवं इराक पढ़े लिखे मुसलमान युवक जा रहे हैं। अभी हैदराबाद में एक दर्जन से ज्यादा पकड़े गए और महाराष्ट्र के एक नवजवान की वहां युद्घ में मारे जाने की सूचना आई। जब आईएसआईएस ने दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य का नक्शा प्रकाशित किया उसमें पश्चिमी भारत और गुजरात को शामिल किया तथा इसका नाम खुरासान रखा। कहा गया कि अभी जो भारतीय यहां लड़ रहे हैं वे बाद में भारत लौटेंगे और दोनों के बीच पुल का काम करेंगे। भारत का मुस्लिम समाज सामूहिक रूप से इसे नजरअंदाज करता है। चार, जिस तरह से हिन्दू सांप्रदायिकता के खिलाफ हिन्दू खड़े होते हैं वैसा कभी सामूहिक रुप से मुसलमान अपने यहां की सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़े नहीं होते। एक हिन्दू की आवाज में यदि सांप्रदायिकता दिख जाती है तो चारों ओर से उस पर हमला होने लगता है। ऐसा कभी हमने मुस्लिम समाज में नहीं देखा। दो चार लोग औपचारिक बयान दे देते हैं और कहते हैं कि हमने तो इसका विरोध किया था। आखिर म्यांमार के दंगे पर मुंबई से लखनऊ तक आग लगाई गई। वैसा भयावह दृश्य पैदा करने वाले कौन थे? लेकिन छिटपुट आलोचना के अलावा मुस्लिम समुदाय ने इसकी खिलाफत नहीं की। आप देखिए, सहारनपुर दंगा एक मुसलमान ने अपने लालच में सेहरी के समय करा दिया, क्योंकि उस समय मुसलमान मस्जिदों में नमाज के लिए भारी संख्या में एकत्रित होते हैं। लेकिन मुस्लिम समाज आज तक उसके विरोध में नहीं उतरा।
विडम्बना देखिए कि प्रधानमंत्री के बयान के साथ योगी आदित्यनाथ, मेनका गांधी या साक्षी महाराज के बयानों को सामने लाकर यह कहा जा रहा है कि आखिर इनके बयान मोदी से भिन्न क्यों हैं? कुछ क्षण के लिए यह प्रश्न वाजिब लगता है। पर आप अपने संदर्भ को भी तो देखिए। वैसे आदित्यनाथ ने लव जेहाद का मसला नहीं उठाया यह पहले से हैं और चूंकि मुस्लिम समुदाय के आजम खान जैसे अनेक नेता इस पर गंभीरता दिखाने की बजाय मजाक उड़ाते हैं, इसलिए राजनीति में सामना करना है तो उसकी प्रतिक्रिया में जवाब दिया जाएगा। लव जेहाद शब्द को छोड़ दे तो वैसी घटनाएं हो रहीं हैं यह सच है। अगर आप सच स्वीकार कर लें तो फिर ऐसी प्रतिक्रिया आएंगी ही नहीं। वैसे भी भाजपा की उ़ प्ऱ में पराजय का कारण यह था ही नहीं। मेनका गांधी के बयान में किसी मजहब पर प्रश्न नहीं था। लेकिन दुनिया में आतंकवाद अवैध धन से ही चल रहा है। इसका प्रमाण पत्र कैसे दिया जा सकता है कि आतंकवाद के पीछे अवैध मांस के व्यापार के किसी व्यक्ति ने कभी पैसा नहीं लगाया? जो लोग इराक या सीरिया भाग रहे हैं या पाकिस्तान, अफगानिस्तान जाते हैं उनको धन कहां से मुहैया होता है इस प्रश्न पर विचार तो करना ही होगा। यह सच है कि हिन्दू समाज में सहिष्णुता की कमी आई है, लेकिन वह पूरे माहौल की प्रतिक्रिया में है। अगर आप उसे समझने की जगह केवल प्रश्न उठाएंगे तो यह स्थिति और बढ़ेगी।
यह सब सच्चाई है जिसके आईने में मोदी के कथन और उस पर आ रही प्रतिक्रियाओं को देखना होगा। वैसे मोदी ने जकारिया के प्रश्न के उत्तर में यह भी कहा कि सबसे पहले, मुझे कोई मनोवैज्ञानिक या धार्मिक विश्लेषण करने का अधिकार नहीं है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मानवता का दुनिया में बचाव किया जाना चाहिए या नहीं। मानवता में विश्वास करने वाले को एकजुट होना चाहिए। यह मानवता के लिए संकट है, किसी एक देश के खिलाफ नहीं। इसलिए हम मानवता और अमानवता से लड़ रहे हैं। और कुछ नहीं। इसका संदेश बिल्कुल साफ है कि जेहाद के नाम पर आतंकवाद मानवता के विरुद्घ है और इसके खिलाफ सभी को एकसाथ मिलकर लड़ना होगा। उसमें किसी मजहब या संप्रदाय आड़े नहीं आना चाहिए। इस तरह गहराई से देखें कि प्रधानमंत्री का बयान परोक्ष रुप से विवेकशील मुसलमानों पर यह जिम्मेवारी डालता है कि आप अपने यहां की सांप्रदायिकता को स्वीकार करें, उसके खिलाफ सामूहिक रुप से उठें, उसके खिलाफ लड़ें।
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