चारा घोटालाः इस IAS ऑफिसर ने किया था खुलासा, लालू को गंवानी पड़ी CM की कुर्सी
लालू यादव को उम्मीद है कि सीबीआई की स्पेशल अदालत उन्हें न्याय देगी। न्याय के रूप में उन्हें सजा मिलती है या फिर रिहाई इसका फैसला तो आज भविष्य के गर्भ में है।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 23 Dec 2017 12:36 PM GMT
लालू यादव को उम्मीद है कि सीबीआई की स्पेशल अदालत उन्हें न्याय देगी। न्याय के रूप में उन्हें सजा मिलती है या फिर रिहाई इसका फैसला तो आज भविष्य के गर्भ में है।
लेकिन क्या आप जानते है बिहार के इस महाघोटाले को उजागर करने वाले नायक के बारे में। नहीं, तो हम बताते है कौन है ये नायक।
चारा घोटाला देश की जनता के सामने 1996 में आया। लेकिन इस खुलासे की पृष्ठभूमि 1993-94 से बननी शुरू हो गई थी। उस समय झारखंड बिहार का हिस्सा था। पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने सबसे पहले चाईबासा से 34 करोड़ रूपए से अधिक की नकिसी से जुड़े मामले का खुलासा किया था और इसकी एक एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था।
अधिकारियों को किया गिरफ्तार
इसके बाद बिहार पुलिस ने गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदग्गा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए।
जनहित याचिका पर सीबीआई को केस सौंपा
इस मामले में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की गई। कोर्ट में जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा न कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।
इस क्रम में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि जब इस मामले में बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी आरोपी हैं, तो पुलिस जांच का क्या औचित्य है? कोर्ट ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी थी।
कई बार हुआ तबादला
जब नवंबर और दिसबंर 1995 में जब खरे ने 10 करोड़ और 9 करोड़ रूपए निकासी की खबर मिली तो उन्हें शक हुआ, उन्हें लगा कि शायद किसी ने अपने पुराने बिल का क्लियरेंस लिया होगा, लेकिन उन्होंने पशुअधिकारियों को बुलाया और पर जांच करने का फैसला किया।
बाद में उन्हें पता चला कि पूरे चाईबासा के कोष से 37.7 करोड़ रूपए अवैध तरीके से निकाले जा चुके थे। बिहार सरकार को खरे का जांच करना रास नहीं आ रहा था तो उनका ट्रांसफऱ कर दिया गया।
पहले उन्हें बिहार स्टेट लेदर कोर्पोरेशन में भेजा गया। वहां के विभाग में काम करने वाले किसी भी कर्मचारी को पैसा नहीं मिल रहा था, जिसका खरे ने विरोध किया और कर्मचारियों के पक्ष में बोलने लगे। सरकार को खरे यहां भी रास नहीं आए और एक बार फिर उनका तबादला कर दिया गया। उसके बाद बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन में एक सचिव के पद पर तैनात किए गए।
लालू को गंवानी पड़ी थी कुर्सी
इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर निगरानी में जांच शुरू हुई थी। वर्ष 1996 में चारा घोटाला पूरी तरह सबके सामने आ गया और लालू प्रसाद की मुश्किलें बढ़ने लगीं। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था और जेल जाना पड़ा था। जिसके बाद लालू यादव ने पत्नी राबड़ी देवी को राज्य की कमान सौंपी
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