पेट्रोल-डीजल के बाद एक भारतीयों पर एक और मार, RBI के इस कदम के बाद मकान-दूकान-ऑटो खरीदना होगा महंगा
भारतीय रिजर्व बैंक ने साढ़े चार साल में पहली बार अपनी नीतिगत दरों में वृद्धि की है। रेपो रेट में चौथाई फीसदी की बढ़ोत्तरी से होम होन, ऑटो लोन, छोटे कारोबारी और उद्योग जगत को मिलने वाले कारोबारी लोन महंगे हो जाएंगे।

भारतीय रिजर्व बैंक ने साढ़े चार साल में पहली बार अपनी नीतिगत दरों में वृद्धि की है। रेपो रेट में चौथाई फीसदी की बढ़ोत्तरी से होम होन, ऑटो लोन, छोटे कारोबारी और उद्योग जगत को मिलने वाले कारोबारी लोन महंगे हो जाएंगे। विमुद्रीकरण और जीएसटी लागू होने के बाद देश की अर्थव्यवस्था जिस तरह हिचकोले खाकर उबर रही है, रिजर्व बैंक के इस कदम से उसे धक्का लग सकता है।
जब रिजर्व बैंक की तीन दिवसीय बैठक शुरू हुई थी, उसके बाद नीति आयोग स्पष्ट कहा था कि सरकार की स्थिति ठीक है, महंगाई नियंत्रण में है, उसे लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है। नीति आयोग का संकेत रिजर्व बैंक के लिए ही था कि वह आनन-फानन में मुद्रास्फीति के नाम पर कर्ज महंगा न कर दे, उसकी तत्परता का कोई असर नहीं दिखाई दिया।
उद्योग संगठन-फिक्की, एसोचैम व सीआईआई ने भी उम्मीद जताई थी अभी कर्ज महंगा होने से औद्योगिक सुस्ती बढ़ेगी। सरकार को भी उम्मीद थी कि अभी कर्ज महंगा नहीं होगा, क्योंकि महंगाई दर लंबे समय से नियंत्रण में है। लेकिन केंद्रीय बैंक ने सभी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए अल्पकालिक ऋण दर रेपो रेट व रिवर्स रेपो रेट में इजाफा कर दिया।
अब रेपो रेट 6.25 फीसदी व रिवर्स रेपो रेट 6 फीसदी हो गया है। हालांकि आरबीआई ने सीआरआर (कैश रिजर्व रेशियो) में कोई बदलाव नहीं किया है। रिजर्व बैंक ने रेट बढ़ाने के पीछे कारण दिया है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के बाद महंगाई बढ़ने की उम्मीद बनी हुई है।
दरअसल, इंटरनेशनल मार्केट में कच्चा तेल 80 डॉलर प्रति बैरल के आस-पास है। तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक और रूस ने कच्चे तेल के उत्पादन में निकट भविष्य में कटौती का ऐलान किया है, जिसके बाद उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले वक्त में कच्चा तेल 100 से 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकता है।
रिजर्व बैंक ने इस आशंका को देखते हुए ही रेपो रेट में बढ़ोत्तरी की है, ताकि महंगाई को नियंत्रित किया जा सके। हालांकि आंकड़ों पर गौर करें तो वर्तमान में महंगाई दर इतनी नहीं है कि रेपो रेट बढ़ाने जैसा कदम उठाया जाय। इस साल अप्रैल माह में थोक महंगाई दर 3.18 फीसदी थी, उससे मार्च में यह दर 2.47 फीसदी थी।
अप्रैल 2017 में थोक महंगाई दर 3.85 प्रतिशत थी। चार फीसदी से कम महंगाई दर अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक संकेत नहीं है। ऐसे में रिजर्व बैंक का रेपो रेट बढ़ाने का कदम अति सतर्कता में उठाया गया कदम लगता है। अभी कर्ज पर ब्याज को सस्ता करने की जरूरत है,
जिससे रियल एस्टेट सेक्टर सुस्ती से उबर सके, ऑटो सेक्टर में रफ्तार तेज हो सके, छोटे उद्यमियों को सस्ता कर्ज मिल सके। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2018-19 में 7.4 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया है, लेकिन कर्ज महंगा रहेगा तो अर्थव्यवस्था में ग्रोथ कैसे आएगी?
अभी कुछ समय से औद्योगिक उत्पादन रफ्तार पकड़ रहा है। जनवरी में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक 7.5 फीसदी रहा। फरवरी में घटकर 4.4 फीसदी हो रह गया था। मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो आईआईपी दो फीसदी के नीचे था। बैंकों के एनपीए आठ लाख करोड़ के स्तर को पार किया है,
जिसमें 90 फीसदी से ज्यादा कर्ज उद्योग जगत में ही फंसे हुए हैं। रिजर्व बैंक को यह समझना होगा। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि जीएसटी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था एक दो साल में दुनिया की सबसे तेज अर्थव्यवस्था होगी। यह तभी होगा जब रिजर्व बैंक भी सकारात्मक सहयोग करेगा।
केंद्रीय बैंक को सोचना होगा कि अगर कर्ज महंगा होगा तो निवेशक विदेशी बैंकों की ओर रुख करेंगे। विश्व में जापान सबसे सस्ता कर्ज मुहैया करा रहा है। रिजर्व बैंक को अपनी मौद्रिक नीति केवल महंगाई के ईर्द-गिर्द रखने के ढर्रे से बाहर निकलना चाहिए।
उसे केवल महंगाई दर नियंत्रण पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि विकास की रफ्तार को बढ़ाने में भी सहयोग करना चाहिए। तेज आर्थिक ग्रोथ के लिए मौद्रिक नीति में महंगाई पर विकास दर को तरजीह दी जानी चाहिए।
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