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Budget 2021: कोरोना महामारी के बाद अब नए वित्त वर्ष से उम्मीदें, बजट तय करेगा अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति

अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ-साथ कारोबार के संचालन में वृद्धि, व्यवधान में कमी तथा टीका आने से भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार की उम्मीद है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के आगे की गति बहुत हद तक 2021-22 के बजट पर भी निर्भर करेगी।

कोरोना महामारी के बाद अब नए वित्त वर्ष से उम्मीदें, बजट तय करेगा अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति
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वित्त वर्ष

कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को ही प्रभावित किया है। अपने देश की बात करें तो यहां भी हालात खासे अच्छे नहीं हैं। देश की जीडीपी दर इतिहास में सबसे नीचे गिरी है। मगर अब नए साल में अर्थव्यवस्था के सुधरने के संकेत मिल रहे हैं। अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ-साथ कारोबार के संचालन में वृद्धि, व्यवधान में कमी तथा टीका आने से भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार की उम्मीद है।

हालांकि, अर्थव्यवस्था के आगे की गति बहुत हद तक 2021-22 के बजट पर भी निर्भर करेगी। भारत 2019 में ब्रिटेन को पीछे छोड़ दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया, लेकिन महामारी की तबाही तथा लॉकडाउन के चलते व्यवसाय के ठप्प हो जाने, उपभोग कमजोर पड़ने, निवेश कम हो जाने, रोजगार के नुकसान आदि ने अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया। कुल मिलाकर असर ऐसा रहा कि 2020 में भारत फिसलकर छठे स्थान पर आ गया।

अप्रैल में निर्मला सीतारमण पेश करेंगी बजट

इस साल अप्रैल से नये वित्त वर्ष की शुरुआत होगी। एक महीने बाद नये वित्त वर्ष के लिये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी। ऐसे में बजट का ध्यान मंदी के झोंकों से अर्थव्यवस्था को उबारने की होगी। विश्लेषकों का मानना है कि सरकार की व्यय योजनाओं विशेषकर बुनियादी संरचनाओं तथा सामाजिक क्षेत्रों में और महामारी व लॉकडाउन से प्रभावित समूहों को राहत से सुधार की गति तय होगी।

भारतीय अर्थव्यवस्था की गति कोरोना वायरस महामारी के आने के पहले से ही सुस्त होने लगी थी। वर्ष 2019 में आर्थिक वृद्धि की गति 10 साल से अधिक के निचले स्तर 4.2 प्रतिशत पर आ गयी थी, जो इससे एक साल पहले 6.1 प्रतिशत थी। महामारी ने लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत के साथ भारत के लिये एक मानवीय और आर्थिक तबाही ला दी। हालांकि, यूरोप और अमेरिका की तुलना में प्रति लाख मौतें काफी कम हैं, लेकिन आर्थिक प्रभाव अधिक गंभीर था। अप्रैल-जून में जीडीपी अपने 2019 के स्तर से 23.9 प्रतिशत कम थी। यह बताता है कि वैश्विक मांग के गायब होने और सख्त राष्ट्रीय लॉकडाउन की श्रृंखला के साथ घरेलू मांग के पतन से देश की आर्थिक गतिविधियों के लगभग एक चौथाई का सफाया हो गया था।

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