गुरु सुधांशु महाराज बोले- हजारों बह गए इन बंद बोतलों के पानी में
कोरोना, लॉकडाउन और आध्यात्म पर आध्यात्मिक गुरु सुधांशु महराज और आईएनएच-हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के बीच लंबी बातचीत हुई। पढ़िए पूरी खबर-

कोरोना संकट के समय को तप का समय बताते हुए आध्यात्मिक गुरु सुधांशु महराज ने लोगों को मन की शक्ति को जगाकर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह समय तिजोरी भरने से ज्यादा अपने घर में कलह से दूर रहकर सौहार्द्र के साथ रहने का है। लोगों को अपनी आध्यात्मिक शक्ति को जगाने का काम इस दौरान करना चाहिए। आध्यात्मिक गुरु सुधांशु महाराज की 'INH-हरिभूमि' के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी के साथ चर्चा के संपादित अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं-
डॉ. हिमांशु द्विवेदी - कोरोना संकट के समय जब मंदिर बंद हैं, ऐसे समय में मदिरालय खोल रखे हैं, इसे किस रूप में देखते हैं?
गुरु सुधांशु महराज - कोरोना के संकट काल में महाकाल अपना विकराल रूप पूरे विश्व में दिखा रहा है। झोपड़ी से लेकर महल तक यह क्रंदन का समय है। लोगों को ऐसे समय में संताप करने की बजाय मन की शक्ति को जगाकर चलना चाहिए। यह तप का समय है। लोगों को इस समय में अपनी तिजोरी भरने के बजाय लोगों से सौहार्द्र से पेश आना चाहिए। अपने घर के अंदर और बाहर लोगों के बीच अच्छा माहौल बनाने की कोशिश करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह प्रार्थना का समय है। इससे शक्ति मिलती है। हम इस दौर से जल्द ही बाहर निकलेंगे। लोगों को अपने मन में संयम रखना चाहिए। सामाजिक दायित्वों का पालन करना चाहिए। जो हाथ कभी दान के लिए उठते थे, वो आज मदिरालय खुलने पर वहां उसकी लाइन में लग गए। वाकई यह दृश्य बहुत विचलित करने वाला है। वैसे कहा जाता है कि हजारों बह गए इन बंद बोतलों के पानी में। कल की लाइनों को देखकर पता चला कि शराबियों की इतनी बड़ी जमात इस देश में है, जो लोग नहीं पीते वो भी इसे देख शर्मशार हो गए। उन्होंने कहा कि जिनके घर में क्लेश होता है, वहां दरिद्रता आती है। जीवन ज्यादा कीमती है, शराब नहीं, यह लोगों को समझना चाहिए। जनता सब देख रही है। सत्ताधीशों को यह ध्यान देना चाहिए कि डंडे से जनतंत्र को नहीं संभाल सकते।
डॉ. हिमांशु द्विवेदी - आपने जीवन में गायत्री मंत्र की महिमा को लेकर बहुत कुछ कहा है। मंत्र से जीवन में क्या परिवर्तन लाया जा सकता है?
गुरु सुधांशु महराज - देश में अभी जो माहौल चल रहा है, ऐसे समय में गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र का जप करना लोगों के लिए बहुत अच्छा होगा। इसमें महादेव और महादेवी दोनों का आशीर्वाद लोगों को मिलेगा। व्यक्तियों को आपने आचार विहार के साथ आस्था पर भी ध्यान देना चाहिए। गायत्री मंत्र अद्भुत है। इसमें स्तुति, उपासना और प्रार्थना तीनों का भाव है। इसका अर्थ यह मंत्र सर्व रक्षक, दुख विनाशक है। इसके माध्यम से वह कहता है कि मैं आपके उस स्वरूप का ध्यान करता हूं। वहीं बुद्धियों को राह दिखाने की भी प्रार्थना इसके माध्यम से करते हैं। सूर्योदय के समय गायत्री मंत्र का 27 बार प्रार्थना करने से व्यक्ति में तेज, बुराइयों का अंत और अन्य कई लाभ मिलते हैं। उन्होंने 27 बार जप करने के महत्व के बारे में बताया कि गायत्री मंत्र के 24 अक्षर हैं और 3 उसके महात्म्य हैं। इस प्रकार 27 नक्षत्रों से इसका संबंध है। उसी प्रकार महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से यह बोध होता है कि आप त्रिकालदर्शी हैं। ध्यान करने वाला सारे दुख और संताप से मुक्ति पा लेता है। साथ ही मंत्र में यह भी कहा गया है कि मुक्ति देना, पर अपनी गोद से दूर न करना। इसे तीन सप्ताह तक करना चाहिए।
डॉ. हिमांशु द्विवेदी - आपने अल्पायु में ही आध्यात्म की ओर कदम रखा, अपने परिवार के बारे में प्रकाश डालें।
गुरु सुधांशु महराज - मेरे परिवार वालों ने मेरी धार्मिक भावनाओं की ओर झुकाव को लेकर लेकर कहा कि धार्मिक कार्य को लेकर हम अपने पहले पुत्र को समर्पित करते हैं। पहले रात्रि में हमारे पिता आध्यात्मिक कथा सुनाते थे और सुबह मंत्रों का पाठ कराते थे। ऐसे में धार्मिक झुकाव आता है। हमारे गुरु विजयेंद्र मुनि के नदी किनारे आश्रम में भी हमें भेजा गया। वहां हमने गुरु की अनेक भावनाओं को ग्रहण किया।
डॉ. हिमांशु द्विवेदी - सांसारिक जीवन के साथ आध्यात्म को भी चलाया, यह दीक्षा कहां से मिली?
गुरु सुधांशु महराज - महात्मा बुद्ध अपनी साधना कर अपने महल की ओर लौटे। उन्होंने अपनी पत्नी यशोधरा को भिक्षा के लिए आवाज लगाई। उनकी पत्नी भिक्षा देने निकली, तो उन्होंने बुद्ध से पूछा कि जिस तप के लिए गए थे, वह पूरा हो गया। क्या वह वन जाने से ही मिलता है? ऐसा है, तो यहां क्यों लौटे? बुद्ध ने बताया कि वहां जाने के बाद उन्हें पता चला कि घर से भी आध्यात्म का पालन हो सकता है। इससे ही मैंने यह शिक्षा ली है।
डॉ. हिमांशु द्विवेदी - 1991 में आपने विश्व जागृति मिशन की स्थापना रामनवमी के दिन की, इसी दिन का चयन आपने क्यों किया?
गुरु सुधांशु महराज - इसका विशेष कारण था। जब शुरू किया था, तब लोगों की समस्याओं को दूर करने सेवा का भाव लेकर चला था। इस पीढ़ी को देने के लिए एक संगठन होना चाहिए। संगठन मर्यादा में रहे, इसे ध्यान में रखकर रामायण की आचार संहिता को कार्य शुरू किया गया। इसके तहत वृद्धाश्रम, स्कूल और अनाथालय के साथ अस्पताल की भी स्थापना की गई।
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