नवरात्रि 2018: मां कालरत्रि की कथा और व्रत-विधि, बुरी शक्तियों से बचाएगा मां दुर्गा का ये काली अवतार
कहते हैं कि मां कालरात्रि की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। देवी असुरों और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं।

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टीम डिजिटल/हरिभूमि, दिल्लीCreated On: 16 Oct 2018 10:39 AM GMT Last Updated On: 2021-10-12 09:57:10.0
मां कालरत्रि की कथा और व्रत-विधि सातवें नवरात्रि में जानना बहुत आवश्यक है। देवी के इस शक्तिशाली रूप की आराधना करने से भक्तों को हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है।
देवी दुर्गा का सातवां स्वरूप मां कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहा गया है। मां कालरात्रि ने असुरों के राजा रक्तबीज का वध किया था। देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। देवी की पूजा शुभ और फलदायी होने के कारण इन्हें 'शुभंकारी' भी कहते हैं। देवी के इस अवतार को देखना डरा देने जैसा है। आंखों में क्राध लिए देवी असरों का वध करती निकलती हैं।
मां कालरात्रि कथा-
कथा के अनुसार दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे चिंतित होकर सभी देवतागण शिव जी के पास गए। शिव जी ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव जी की बात मानकर पार्वती जी ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। परंतु जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए।
इसे देख दुर्गा जी ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया। इसलिए देवी के इस अवतार को कालरात्रि या काली मां कहा जाता है।
देवी कालरात्रि का अवतार काफी डरावना है। मां का शरीर रात के अंधकार की तरह काला है, बाल खुले और बिखरे हुए हैं। मां के गले में विधुत की माला है। इनके चार हाथ हैं जिसमें इन्होंने एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा धारण किया हुआ है। इसके अलावा इनके दो हाथ वरमुद्रा और अभय मुद्रा में है। इनके तीन नेत्र है तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ (गधा) है। देवी ने इसी अवतार में रक्तबीज जैसे असुर का वध कर भक्तों की रक्षा की थी।
मान्यता है कि माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है। माता कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले जातकों की भी देवी हैं। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। देवी असुरों और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इसलिए देवी कालरात्रि की पूजा सामान्य नहीं है।
नवरात्रि में मां कालरात्रि व्रत विधि
नवरात्रि के सातवें दिन देवी का व्रत करें। मूर्ती स्थापित कर मां कालरात्रि की पूरे विधि-विधान से पूजा करें। मां की पूजा के लिए काले रंग के वस्त्र धारण करें। देवी को सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करें। इसे ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति शोक मुक्त हो सकता है।
मां कालरात्रि के पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। देवी कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है। मां कालरात्रि के भक्तों को किसी भी प्रकार का भय नहीं सताता है भूत, प्रेत, पिशाच और राक्षस इनके नाम का स्मरण करने से ही भाग खड़े होते हैं। देवी कालरात्रि के पूजन के लिए प्रयुक्त मन्त्र निम्नलिखित है|
मां कालरात्रि मन्त्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
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