योनि पूजा कहां और क्यों होती है, जानें पूरा सच
- कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है।
- कामाख्या शक्तिपीठ में देवी सती का योनि भाग गिरा था और यहां आज भी योनि की पूजा होती है।

असम के गुवाहाटी शहर में स्थित कामाख्या स्थान पर एक ऐसा मंदिर है जहां पर आज भी योनि की पूजा होती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि देवी सती का योनि भाग कामाख्या में गिरा था। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म और पुराणों के मुताबिक, जहां-जहां सती के अंग या धारण किए हूए वस्त्र और आभूषण गिरे थे वहां पर शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। इस तीर्थस्थल पर देवी सती की पूजा योनि के रुप में की जाती है जबकि यहां पर कोई देवी की मूर्ति नहीं है। यहां पर सिर्फ एक योनि के आकार का शिलाखंड है। जिस पर लाल रंग के गेरू की धारा गिराई जाती है। भारतीय इतिहास के मुताबिक, 16वीं सदी में इस मंदिर को एक बार नष्ट कर दिया गया था। फिर कुछ सालों बाद बिहार के राजा नारायण नरसिंह द्वारा 17वीं सदी में इस मंदिर का पुन: निर्माण हुआ।
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मंदिर के बाहर मधुमक्खियों के छत्तों की आकृतियां भी बनी हुई हैं और ऐसा भी बताया जाता है कि इस मंदिर के बाहर गणेश जी और शंकर भगवान की मूर्तियां भी बनी हुई हैं।
कालकेय पुराण में शिव की युवा दुल्हन को मुक्ति प्रदान करने वाली शक्ति को कामाख्या कहा जाता है। श्रद्धालुओं को विश्वास है कि सती के पिता राजा दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उनके पति शंकर को अपने यहां यक्ष में अपमानित किया और भगवान शिव को अपशब्द भी कहे थे इससे दुखी होकर सती ने उस जलती हुई आग में अपने कदम बढ़ाए और उसी आग में अपना आत्मदाह कर लिया था।
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शिवजी ने सती के दाह शरीर को उठाकर तांडव नृत्य किया। उस समय सती के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग जगहों पर जा गिरे जोकि 51 शक्तिपीठों के नाम से भी जाने जाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि सती का योनि भाग असम के कामाख्या में जा गिरा जहां पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है और आज भी वहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु जाते हैं और वहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ हर समय लगी रहती है।
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इस मंदिर के पास एक कुंड है जहां पर पांच दिन तक दुर्गा माता की पूजा भी की जाती है और यहां पर हजारों की संख्या में भक्त लोग दर्शन के लिए प्रतिदिन आते हैं। इस मंदिर में कामाख्या मां को बकरे, कछुए और भैंसों की बलि चढ़ाई जाती है और वहीं कुछ लोग कबूतर, मछली और गन्ना भी मां कामाख्या देवी मंदिर में चढ़ाते हैं। वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि प्राचीनकाल में यहां पर मानव शिशुओं की भी बलि चढ़ाई जाती थी लेकिन अब वर्तमान में इस प्रथा को बंद कर दिया गया है।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)