Kabir Jayanti 2021 : साल 2021 में संत कबीरदास जी की जयंती कब है, जानें उनके जन्म की कथा
- कबीरदास जी का जन्म संवत 1455 ई. की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था।
- ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन देशभर में कबीरदास जी की जयंती मनायी जाती है।
- संत कबीरदास जी समाज में फैल रहे आडंबरों के सख्त विरोधी थे।

Kabir Jayanti 2021 : कबीरदास जी का जन्म संवत 1455 ई. की ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। इसलिए ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन देशभर में कबीरदास जी की जयंती मनायी जाती है। संत कबीरदास जी समाज में फैल रहे आडंबरों के सख्त विरोधी थे। संत कबीरदास जी की जयंती 24 जून 2021, दिन बृहस्पतिवार को मनायी जाएगी।
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संत कबीरदास जयंती 2021
संत कबीरदास जयंती | 24 जून 2021, दिन बृहस्पतिवार |
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ | 24 जून सुबह 03:32 बजे से |
पूर्णिमा तिथि समाप्त | 25 जून सुबह 12:09 बजे पर |
संत कबीर दास भक्तिकाल के एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज सुधार के कार्यों में लगा दिया। कबीर कर्म प्रधान कवि थे, इसका उल्लेख उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।
कबीर के माता-पिता के विषय में लोगों का कहना है कि जब दो राहगीर, नीमा और नीरु विवाह कर बनारस जा रहे थे, तब वह दोनों विश्राम के लिए लहरतारा ताल के पास रुके। उसी समय नीमा को कबीरदास जी, कमल के पुष्प में लपटे हुए मिले थे।
कबीर बिना पढ़े-लिखे (अनपढ) थे, उन्हें शास्त्रों का ज्ञान अपने गुरु स्वामी रामानंद द्वारा प्राप्त हुआ था। संत कबीर दास को अपने गुरु से शिक्षा लेने के लिए भी बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उस दौरान रामानंद स्वामी द्वारा सामाजिक कुरुतियों को लेकर विरोध किया जा रहा था, इस बात का पता जब कबीर को चला, तो कबीर उनसे मिलने पहुंच गए।
ऐसी मान्यता है कि कबीर का जन्म सन् 1398 ई.(लगभग), लहरतारा ताल, काशी के समक्ष हुआ था। कबीर के जन्म के विषय में बहुत से रहस्य हैं। कुछ लोगों का कहना है कि रामानंद स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक ब्राहम्णी के गर्भ से जन्म लिया था,जो की विधवा थी।
कबीरदास जी की मां को भूल से रामानंद स्वामी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। उनकी मां ने कबीरदास को लहरतारा ताल के पास फेंक दिया था। कुछ लोग कहते हैं कि कबीर जन्म से ही मुसलमान थे और बाद में उन्हें अपने गुरु रामानंद से हिन्दू धर्म का ज्ञान प्राप्त हुआ।
वहीं कबीर संपूर्ण जीवन काशी में रहने के बाद, मगहर चले गए। उनके अंतिम समय को लेकर मतांतर रहा है, लेकिन कहा जाता है कि 1518 के आसपास, मगहर में उन्होनें अपनी अंतिम सांस ली।
(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)