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Gudi Padwa 2021 : गुड़ी पड़वा की डेट, शुभ मुहूर्त, महत्व और एक क्लिक में जानें पूजा विधि व कथा

  • गुड़ी (Gudi) का अर्थ होता है झंडा और पड़वा का अर्थ होता है प्रतिपदा।
  • गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान ब्रह्मदेव (Lord Brahmdev) ने सृष्टि का निर्माण कार्य किया था।

Gudi Padwa 2022: गुड़ी पड़वा साल 2022 में कब है, जानें इसका ये महत्व
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Gudi Padwa 2021 : गुड़ी पड़वा का पर्व चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। गुड़ी (Gudi) का अर्थ होता है झंडा और पड़वा का अर्थ होता है प्रतिपदा। वहीं पुराणों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन ही भगवान ब्रह्मदेव (Lord Brahmdev) ने सृष्टि का निर्माण कार्य किया था। इसीलिए लोग इस दिन अपने घरों की साफ-सफाई करके रंगोली आदि बनाकर बंदवार लगाते हैं। हिन्दू धर्म में रंगोली और बंदवार को बहुत शुभ माना जाता है। तो आइए जानते हैं साल 2021 में गुड़ी पड़वा की डेट, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा के बारे में।

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गुड़ी पड़वा 2021 शुभ मुहूर्त

गुड़ी पड़वा

13 अप्रैल 2021

दिन मंगलवार

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ

12 अप्रैल 2021, सोमवार

सुबह 8 बजे से

प्रतिपदा तिथि समाप्त

13 अप्रैल 2021, मंगलवार

सुबह 10 बजकर 16 मिनट तक

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गुड़ी पड़वा का महत्व

गुड़ी पड़वा के दिन सुबह जल्दी उठकर महिलाएं अपने घरों की सफाई करके रंगोली और बंदनवार आदि से अपने घर को सजाती हैं। गुड़ी पड़वा के दिन घर के सामने एक झंडा भी लगाया जाता है। जिसे गुड़ी के नाम से जाना जाता है। झंडे को विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन बर्तन पर भी स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर रखा जाता है। लोग इस दिन पारंपरिक वेषभूषा धारण करते हैं। गुड़ी पड़वा के दिन सूर्यदेव की आराधना को महत्व दिया जाता है। सूर्यदेव के अलावा इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्त्रोत, देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है।

भारत के कई राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा के पर्व को विशेष महत्व दिया जाता है। इस दिन घर के बाहर आम के पत्तों का बंदवार लगाया जाता है। जिससे घर में खुशहाली रहे। यह त्योहर अच्छी फसल और घर में समृद्धि के लिए भी मनाया जाता है। ऐसी मान्याता है कि गुड़ी पड़वा के दिन बनाया गया भोजन बहुत स्वास्थ्यवर्धक होता है। आंध्र प्रदेश में जो प्रसाद बांटा जाता है उसे पच्चड़ी, महाराष्ट्र में बांटे जाने वाले प्रसाद को मीठी रोटी अथवा पूरन पोली कहते हैं।


गुड़ी पड़वा की पूजा विधि

  • गुड़ी पड़वा के दिन सुबह जल्दी उठकर बेसन का उबटन और तेल लगाने के बाद ही स्नान किया जाता है।
  • घर में जिस स्थान पर गुड़ी लगाई जाती है। उस जगह को अच्छी तरह से साफ कर लिया जाता है।
  • गुड़ी के स्थान को स्वच्छ करने के बाद पूजा का संकल्प लें और साफ किए गए स्थान पर एक स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद बालू मिट्टी की वेदी का निर्माण करें।
  • इसके बाद सफेद रंग का कपड़ा बिछाकर हल्दी कुमकुम से रंगे। इसके बाद अष्टदल बनाकर ब्रह्मा जी की मूर्ति स्थापित करके विधिवत पूजा करें।
  • पूजा के बाद गुड़ी यानी एक झंड़ा स्थापित करें।

गुड़ी पड़वा की कथा

गुड़ी पड़वा का पर्व दक्षिण भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। त्रेतायुग में दक्षिण भारत को राजा बालि का राज्य माना जाता था। जिस समय रावण ने माता सीता का हरण किया था। उस समय रावण से माता सीता को वापस लाने के लिए भगवान श्रीराम को एक विशाल सेना की आवश्यकता थी। भगवान श्रीराम माता सीता को खोजते हुए दक्षिण भारत की और गए जहां उन्हें सुग्रीव मिला। सुग्रीव ने भगवान श्रीराम को बालि के सभी अत्याचारों के बारे में बताया और उनसे सहायता मांगी। सुग्रीव के कहने पर भगवान श्रीराम ने वानरराज बालि को मार दिया। जिस दिन बाली का वध हुआ था। उस दिन गुड़ी पड़वा का ही दिन था।


गुड़ी पड़वा से जुड़ी एक दूसरी कथा के अनुसार, राजा शालिवाहन के पास युद्ध के लिए कोई भी सेना नहीं थी। इसलिए उसने एक मिट्टी की सेना का निर्माण किया था और उनमें प्राण डाले थे। जिस दिन शालिवाहन ने मिट्टी के पुतलों में प्राण फूंके थे उस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही दिन था। तब ही गुड़ी पड़वा के दिन विजयपताका फहराई जाती है। शक का आरंभ भी शालिवाहन से ही माना जाता है। क्योंकि शालिवाहन ने अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त की थी।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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