भारतीय बेटियों के चैंपियन बनने की कहानी: जीत के पीछे तपस्या, कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ता
Team India world champion: 52 साल के इंतजार के बाद भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा। जानिए इस जीत के पीछे की प्रेरक कहानी और मेहनत की तपस्या।
भारतीय महिला टीम समर्पण और मेहनत से बनी विश्व चैंपियन.
Team India world champion: यह कहावत पूरी तरह से सच है कि कामयाबी के पीछे तपस्या, यानी कड़ी मेहनत, समर्पण व दृढ़ता होती है। सफलता आसानी से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए स्पष्ट लक्ष्य, सही योजना, लगातार प्रयास और असफलताओं से सीखने की जरूरत होती है। किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए पूरी निष्ठा और मेहनत से जुट जाना जरूरी है। यही किया है भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने।
अपनी कड़ी मेहनत और लगन से टीम ने 52 साल के इतिहास में पहला विमेंस वनडे वर्ल्ड कप अपने नाम किया है। मुंबई में खेले गए फाइनल मुकाबले में भारत की लड़कियों ने साउथ अफ्रीका को 52 रनों से हराकर इतिहास रचा।
ये वो टीम है, जिसके हर खिलाड़ी की कहानी प्रेरणा देती है। किसी के माता-पिता ने दिहाड़ी मजदूरी कर बेटी को क्रिकेटर बनाया है, तो किसी के पैरेंट्स सरकारी जॉब में रहे हैं। किसी के पिता ज्वेलरी की दुकान चलाते हैं तो किसी के घरवाले सब्जी बेचते रहे हैं, लेकिन इन बेटियों ने अपने खुद के हौसले के दम पर नई उड़ान भरी है।
तीसरा स्वर्ण अध्याय: हरमनप्रीत कौर अब कपिल देव और एम.एस. धोनी की उस विशिष्ट लीग में शामिल हैं, जिन्होंने भारत को विश्व कप जिताया।
फाइनल मुकाबले में प्लेयर ऑफ द मैच रहीं शेफाली वर्मा रोहतक की रहने वाली हैं। इनके पिता ज्वेलरी की दुकान चलाते हैं और मां गृहणी हैं। रेणुका सिंह की मां दर्जा चार की कर्मचारी हैं। राधा यादव के पिता सब्जी बेचते हैं। उमा छेदी के माता-पिता दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। अब इनकी लाड़लियों ने अपने जज्बे से नया इतिहास लिख दिया है।
विश्व चैंपियन बनने के पीछे केवल खिलाड़ियों का ही नहीं, बल्कि माहौल और सुविधाओं का भी अहम योगदान रहा है, जो बीसीसीआई ने उन्हें उपलब्ध करवाई। वो समय था जब भारत का महिला क्रिकेट इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज से बहुत पीछे था, लेकिन विमेंस प्रीमियर लीग की शुरुआत के बाद हालात बदल गए।
जय शाह से पहले सभी बीसीसीआई अध्यक्ष इसे शुरू करने का प्लान ही बनाते रह गए, शाह ने इसकी शुरुआत 2023 में कर दी। ऐसे प्लेटफॉर्म पर युवा और घरेलू प्लेयर्स को विदेशी खिलाड़ियों के साथ खेलने और सीखने का मौका मिलता है। इतना ही नहीं, प्लेयर्स एक महीने तक इंटरनेशनल लेवल की ट्रेनिंग, बेहतर कोच और प्रेशर सिचुएशन का सामना करने लगीं, जिसका फायदा इंडिया विमेंस टीम को भी मिला।
इन्हीं मुकाबलों से टीम इंडिया को यास्तिका भाटिया, श्रेयांका पाटील, अमनजोत कौर, श्री चरणी, क्रांति गौड़ जैसी युवा और आक्रामक प्लेयर्स मिलीं। यास्तिका और श्रेयांका इंजरी के कारण वर्ल्ड कप का हिस्सा नहीं बन सकीं, लेकिन बाकी प्लेयर्स ने भारत को फाइनल में पहुंचाने में अहम योगदान दिया।
इस जीत के पीछे टीम के कोच का भी अहम रोल रहा। विश्व कप जीत के बाद जैसे ही हेड कोच अमोल मजूमदार सामने आए, वैसे ही हरमनप्रीत ने दोनों हाथों से उनके पैर छुए। जो बताता है कि टीम को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनका कितना योगदान रहा है। वैसे भी अनेक खिलाड़ियों ने भी इस विश्व कप को अमोल मजूमदार द्वारा बनाई गई रणनीति की ही जीत बताया है।
बहरहाल, हालात चाहे जैसे भी रहे हों, लेकिन यह सच है कि भारत की बेटियों ने 2 नवंबर 2025 के दिन को महिला क्रिकेट के इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया है। भारतीय महिला टीम ने वो कारनामा किया, जो 1983 में कपिल देव की टीम ने किया था। किसी ने भी मुकाबले की शुरुआत में नहीं सोचा था कि टीम इंडिया विश्व चैंपियन बनेगी, लेकिन हमारी बेटियों ने आखिरकार वह कर दिखाया। जिससे पूरा देश गौरवान्वित और सम्मानित मसूस कर रहा है।