दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ बही-खाता पूजन करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन बही-खता पूजन से माता लक्ष्मी की कृपा साल भर बनी रहती है। दिवाली के दिन इस विधि से लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ बही-खाता पूजन करना चाहिए।
बही-खाता पूजन विधि
बही-खातों का पूजन हेतु शुभ मुहूर्त में नए खाता पुस्तकों पर केसर और चंदन मिलकर लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए। फिर इन बही-खता और पुस्तकों के ऊपर 'श्री गणेशाय नम:' लिखना चाहिए। फिर नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दूर्वा, धनिया और दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए।
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माता सरस्वती का ऐसे ध्यान करें कि जो माता अपने हाथों में घंटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं। चन्द्र के समान जिनकी मनोहर कांति है और वीणा जिनका वाद्य यंत्र है। ऐसी भगवती सरस्वती प्रसन्न हों। इसके बाद बही खातों को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करना चाहिए।
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जिस स्थान पर नवग्रह यंत्र बनाया गया है वहां दक्षिणा, सोना या चांदी का सिक्का, लक्ष्मी जी की मूर्ति या मिट्टी के बने हुएलक्ष्मी-गणेश-सरस्वती जी की मूर्तियां सजायें। कोई धातु की मूर्ति हो तो उसे साक्षात रूप मानकर दूध, दही ओर गंगाजल से स्नान कराकर अक्षत, चंदन का श्रृंगार करके फूल आदि से सजाएं। इसके ही दाहिने और एक पंचमुखी दीपक अवश्य जलाएं, जिसमें घी या तिल का तेल प्रयोग किया जाता है।